RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 1: आत्म-परिचय, एक गीत

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Chapter 1 of the RBSE Class 12 Hindi Aroh Part 2 textbook, titled “आत्म-परिचय, एक गीत” (Atma-Parichay, Ek Geet), is an important part of the Hindi syllabus. This chapter provides a beautiful exploration of the poet’s identity and personal reflections through a poetic lens. The poem is both philosophical and self-reflective, giving readers insights into the poet’s thoughts about self-awareness and the journey of life.

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RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 1: आत्म-परिचय, एक गीत

In this article, we will provide detailed RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 to help students understand the poem deeply and answer questions effectively.

Summary of Chapter 1: आत्म-परिचय, एक गीत

The poem “आत्म-परिचय, एक गीत” is written by famous poet महादेवी वर्मा. The poet expresses the concept of self-identity, the human spirit, and the intrinsic relationship between the soul and life. Through poetic verses, the poet describes how an individual can discover their inner self and maintain harmony with the outer world.

The poem is a reflection on human life, where the poet expresses her desire to understand herself beyond the materialistic world. The central theme revolves around self-realization, spiritual growth, and the search for true identity.

RBSE Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 Solutions

Here are the solutions to the questions and exercises found at the end of Chapter 1: आत्म-परिचय, एक गीत from the RBSE Hindi textbook. These answers will help students prepare for their exams and understand the chapter thoroughly.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता एक ओर जगजीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि ने जीवन का आशय जगत से लिया है अर्थात् वह जगतरूपी जीवन का भार लिए घूमता है। कहने का भाव है कि कवि ने अपने जीवन को जगत का भार माना है। इस भार को वह स्वयं वहन करता है। वह अपने जीवन के प्रति लापरवाह नहीं है। लेकिन वह संसार का ध्यान नहीं करता। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि संसार या उसमें रहने वाले लोग क्या करते हैं। इसलिए उसने अपनी कविता में कहा है कि मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ। अर्थात् मुझे इस संसार से कोई या किसी प्रकार का मतलब नहीं है।

प्रश्न 2.
जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’ – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
दाना का आशय है जानकार लोग अर्थात् सबकुछ जानने वाले और समझने वाले लोग। कवि कहता है कि संसार में दोनों तरह के लोग होते हैं – ज्ञानी और अज्ञानी, अर्थात् समझदार और नासमझ दोनों ही तरह के लोग इस संसार में रहते हैं। जो लोग प्रत्येक काम को समझबूझ कर करते हैं वे ‘दाना’ होते हैं, जबकि बिना सोचे-विचारे काम करने वाले लोग नादान होते हैं। अतः कवि ने दोनों में अंतर बताने के लिए ही ऐसा कहा है।

प्रश्न 3.
‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता’-पंक्ति में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर:
इस कविता में कवि ने ‘और’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया है। इस शब्द की अपनी ही विशेषता है जिसे विशेषण के रूप में प्रयुक्त किया गया है। मैं और में इसमें और शब्द का अर्थ है कि मेरा अस्तित्व बिल्कुल अलग है। में तो कोई अन्य ही अर्थात् विशेष व्यक्ति हूँ। और जग’ में और शब्द से आशय है कि यह जगत भी कुछ अलग ही है। यह जगत भी मेरे अस्तित्व की तरह कुछ और है। तीसरे ‘और’ का अर्थ है के साथ। कवि कहता है कि जब मैं और मेरा अस्तित्व बिलकुल अलग है। यह जगत भी बिलकुल अलग है तो मेरा इस जगत के साथ संबंध कैसे बन सकता है। अर्थात् मैं और
यह संसार परस्पर नहीं मिल सकते क्योंकि दोनों का अलग ही महत्त्व है।

प्रश्न 4.
शीतल वाणी में आग-के होने का क्या अभिप्राय है? (CBSE-2011, 2014)
उत्तर:
शीतल वाणी में आग कहकर कवि ने विरोधाभास की स्थिति पैदा की है। कवि कहता है कि यद्यपि मेरे द्वारा कही हुई बातें शीतल और सरल हैं। जो कुछ मैं कहता हूँ वह ठंडे दिमाग से कहता हूँ, लेकिन मेरे इस कहने में बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। मेरे द्वारा कहे गए हर शब्द में संघर्ष हैं। मैंने जीवन भर जो संघर्ष किए उन्हें जब मैं कविता का रूप देता हूँ तो वह शीतल वाणी बन जाती है। मेरा जीवन मेरे दुखों के कारण मन ही मन रोता है लेकिन कविता के द्वारा जो कुछ कहता हूँ उसमें सहजता रूपी शीतलता होती है।

प्रश्न 5.
बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे? (CBSE-2008)
उत्तर:
बच्चे से यहाँ आशय चिड़ियों के बच्चों से है। जब उनके माँ-बाप भोजन की खोज में उन्हें छोड़कर दूर चले जाते हैं तो वे दिनभर माँ-बाप के लौटने की प्रतीक्षा करते हैं। शाम ढलते ही वे सोचते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे लिए दाना, तिनका, लेकर आते ही होंगे। वे हमारे लिए भोजन लाएँगे। हमें ढेर सारा चुग्गा देंगे ताकि हमारा पेट भर सके। बच्चे आशावादी हैं। वे सुबह से लेकर शाम तक यही आशा करते हैं कि कब हमारे माता-पिता आएँ और वे कब हमें चुग्गा दें। वे विशेष आशा करते हैं कि हमें ढेर सारा खाने को मिलेगा साथ ही हमें बहुत प्यार-दुलार भी मिलेगा।

प्रश्न 6.
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’-की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर:
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ – वाक्य की कई बार आवृत्ति कवि ने की है। इससे आशय है कि जीवन बहुत छोटा है। जिस प्रकार सूर्य उदय होने के बाद अस्त हो जाता है ठीक वैसे ही मानव जीवन है। यह जीवन प्रतिक्षण कम होता जाता है। प्रत्येक मनुष्य का जीवन एक न एक दिन समाप्त हो जाएगा। हर वस्तु नश्वर है। कविता की विशेषता इसी बात में है। कि इस वाक्य के माध्यम से कवि ने जीवन की सच्चाई को प्रस्तुत किया है। चाहे राहगीर को अपनी मंजिल पर पहुँचना हो या चिड़ियों को अपने बच्चों के पास। सभी जल्दी से जल्दी पहुँचना चाहते हैं। उन्हें डर है कि यदि दिन ढल गया तो अपनी मंजिल तक पहुँचना असंभव हो जाएगी।

कविता के आस-पास

प्रश्न 1.
संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इस नाते उसे समाज के हर संबंध का निर्वाह करना पड़ता है। जीवन में हर तरह के उतार
चढ़ाव आते हैं। सुख और दुख तो मानव जीवन का अभिन्न अंग है। सुख है तो दुख आएगा और यदि दुख है तो सुख अवश्य है। सुख और दुख इन्हीं दो आधारों पर मानव का जीवन चलता है। संसार में कष्ट सहना प्रत्येक मानव की नियति है। चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब सभी को सुख-दुख झेलने पड़ते हैं। जीवनरूपी गाड़ी इन्हीं दो पहियों पर चलती है। जिस प्रकार रात के बाद सवेरा होता है ठीक उसी प्रकार दुख के बाद सुख आता है। व्यक्ति इन दुखों में भी खुशी और मस्ती का जीवन जी सकता है। वह दुख में ज्यादा दुखी न हो उसे ऐसे समझना चाहिए कि यह तो नियति है। यही मानव जीवन है। बिना दुखों के सुखों की सच्ची अनुभूति नहीं की जा सकती। अर्थात् दुख ही सुख की कसौटी है। यदि व्यक्ति ऐसा सोच ले तो वह दुख की स्थिति में भी खुश रहेगा तो उसका जीवन मस्ती से भरपूर होगा। सुख में अधिक सुखी न होना और दुख में अधिक दुखी न होना ही मानव जीवन को व्यवस्थित कर देता है। जो व्यक्ति इन दोनों में सामंजस्य बनाकर चलता है वह दुख में भी खुश और मस्त रहता है।

आपसदारी

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य’ कविता दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई ‘आत्म-परिचय’ कविता से इस कविता को आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें।
आत्मकथ्य

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं। भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं। उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
तब भी कहते हो कह डालें दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागरे रीति ।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम खाली करने वाले ।
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
                                               -जयशंकर प्रसाद

उत्तर:
जयशंकर प्रसाद छायावाद के आधार स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ तथा हालावाद के प्रवर्तक हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ दोनों एक जैसी हैं। दोनों का कथ्य एक है। जयशंकर प्रसाद जी ने अपने जीवन की व्यथा-कथा इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत की है। ठीक उसी तरह, जिस तरह कि हरिवंशराय जी ने। प्रसाद जी कहते हैं कि मुझे कभी सुख नहीं मिला। सुख तो मेरे लिए किसी सुनहरे स्वप्न की तरह ही रहा – “मिला कहाँ वह सुख जिसका स्वप्न मैं देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।” ठीक इसी प्रकार के भाव बच्चन जी ने व्यक्त किए हैं। वे कहते हैं कि मेरे जीवन में इतने दुख आए कि मैं दिन-प्रतिदिन रोता रहा और लोगों ने मेरे रोदन को राग समझा। मुझे भी कभी सुख नहीं मिले – “मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ” इस प्रकार कहा जा सकता है कि इन दोनों कविताओं में अंतर्संबंध है। दोनों ही कवियों ने अपनी वेदना को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। दोनों कवियों की इन कविताओं की मूल संवेदना भोगा हुआ दुख है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि अपने मन का गान किस प्रकार करता है? उत्तर- कवि कहता है कि मैंने हमेशा अपने मन की बात मानी है। मैं कभी अपने प्रति लापरवाह नहीं रहा। मैंने हमेशा वही किया जो मेरे मन ने कहा, लेकिन मैंने अपनी दुनिया की परवाह नहीं कि इसलिए मैं अपने मन का ही गान करता हूँ।

प्रश्न 2.
कवि सुख और दुख – दोनों स्थितियों में मग्न कैसे रह पाता है?
उत्तर:
कवि कहता है कि मैं दुख में ज्यादा दुखी नहीं हुआ और सुख में ज्यादा खुश नहीं हुआ। मैंने हमेशा दोनों स्थितियों में सामंजस्य बनाए रखा। दुख और सुख दोनों को एक जैसा माना क्योंकि ये दोनों स्थितियों तो मानव जीवन में आती है। इसलिए कवि सुख और दुख दोनों स्थितियों में मग्न रहता है।

प्रश्न 3.
कवि जग को अपने से अलग कैसे मानता है?
उत्तर:
कवि कहता है कि मेरा और जगत दोनों का ही अस्तित्व अलग-अलग है। मैं कभी जगत के बारे में नहीं सोचता हूँ। मुझे केवल मेरे से ही काम है। यह जगत् मेरी ही तरह अपने में ही मस्त है। जब दोनों का अस्तित्व अलग-अलग है तो मैं जगत को एक सा क्यों मानूं?

प्रश्न 4.
दिन का थका पंथी कैसे जल्दी-जल्दी चलता है? (CBSE-2010)
उत्तर:
राह चलते-चलते यद्यपि पंथी (राहगीर) थक जाता है, लेकिन वह फिर भी चलते रहना चाहता है। उसे डर है कि यदि वह रुक गया तो रात ढल जाएगी अर्थात् रात के होते ही मुझे रास्ते में रुकना पड़ेगा। इसलिए दिन का थका पंथी जल्दी जल्दी चलता है।

प्रश्न 5.
दिन के जल्दी-जल्दी ढलने से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
दिन के जल्दी-जल्दी ढलने के कारण व्यक्ति सजग हो जाता है। वह जल्दी से जल्दी अपनी मंजिल पर पहुँचना चाहता है। जल्दी-जल्दी ढलने की भावना के कारण व्यक्ति में स्फूर्ति आ जाती है। इसी कारण वह प्रत्येक कार्य समय रहते पूरा कर लेना चाहता है।

प्रश्न 6.
पहली कविता की अलंकार योजना बताइए।
उत्तर:
कवि बच्चन ने ‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता में अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा, रूपक और प्रश्न आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। ये अलंकार थोपे हुए प्रतीत नहीं होते। इनका प्रयोग करना ज़रूरी भी था क्योंकि इनके प्रयोग। से कविता में सौंदर्य की वृद्धि हुई है।

प्रश्न 7.
कवि की भाषा-शैली के बारे में बताइए।
उत्तर:
कवि की दोनों कविताओं की भाषा सहज, सरल और स्वाभाविक है। यद्यपि कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग हुआ है, लेकिन वह कठिन नहीं लगती। भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की पूरा क्षमता है। भाषा-शैली प्रभावशाली
है। देशज विदेशी सभी तरह के शब्दों का प्रयोग कवि ने किया है।

प्रश्न 8.
कवि ने किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर:
‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता में कवि ने वैयक्तिक अर्थात् मैं शैली का प्रयोग किया है। उसने इस शैली का प्रयोग भावों के अनुकूल एवं सार्थक ढंग से किया है। इस शैली का प्रयोग करके कवि ने अपने बारे में पाठकों को सबकुछ बताने की
कोशिश की है।

प्रश्न 9.
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है, कविता में कौन से रस हैं?
उत्तर:
इस कविता में मुख्यतः कवि ने दो रसों का प्रयोग किया है- वात्सल्य रस और श्रृंगार रस। इन रसों का प्रयोग करके कवि ने कविता के सौंदर्य में वृद्धि की है। पक्षियों के वात्सल्य और कवि के प्रेम का चित्रण इन्हीं रसों के माध्यम से हुआ है। कहने का आशय है कि कवि की रस योजना भावानुकूल बन पड़ी है।

प्रश्न 10.
‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि ने अपने जीवन में किन परस्पर विरोधी बातों का सामंजस्य बिठाने की बात की है? (CBSE-2016)
उत्तर:
इस कविता में, कवि ने अपने जीवन की अनेक विरोधी बातों का सामंजस्य बिठाने की बात की है। कवि सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह संसार की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार अपने चहेतों का गुणगान करता है। उसे यह संसार अपूर्ण लगता है। वह अपने सपनों का संसार लिए फिरता है। वह यौवन का उन्माद व अवसाद साथ लिए रहता है। वह शीतल वाणी में आग लिए फिरता है।

प्रश्न 11.
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है, में पक्षी तो लौटने को विकल है, पर कवि में उत्साह नहीं है। ऐसा क्यों? (CBSE-2015, 2016)
उत्तर:
इस कविता में पक्षी अपने घरों में लौटने को विकल है, परंतु कवि में उत्साह नहीं है। इसका कारण यह है कि पक्षियों के बच्चे उनको इंतज़ार कर रहे हैं। कवि अकेला है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है। इसलिए उसके मन में घर जाने का कोई उत्साह नहीं है।

प्रश्न 12.
आशय स्पष्ट कीजिए – ‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता!’ (CBSE-2016)
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि मेरा जीवन अलग है। संसार अपने मोह में डूबा हुआ है। इन दोनों के बीच कोई स्वाभाविक संबंध नहीं है। कवि अपनी भावनाओं के लोक में जीता है।

प्रश्न 13.
निम्न काव्यांशों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क) मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !

(ख) हो जाए ने पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में कवि ने अपने मन की व्यथा तथा संसार के दृष्टिकोण को व्यक्त किया है। ‘रोदन में राग’, ‘शीतल वाणी में आग’, में विरोधाभास अलंकार है। ‘कवि कहकर’ में अनुप्रास अलंकार है। गेयतत्व की प्रधानता है। खड़ी बोली है। मिश्रित शब्दावली है। शांत रस है। भाषा में प्रवाह है। ‘फूट पड़ा’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है। आत्मकथात्मक शैली है।।

(ख) इन पंक्तियों में कवि ने जीवन की क्षणभंगुरता का वर्णन किया है। जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। दिन का मानवीकरण किया गया है। खड़ी बोली है। मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है। भाषा में प्रवाह है। गेयता है। छायावादी शैली का प्रभाव है।

प्रश्न 14.
‘आत्मपरिचय’ कविता को दृष्टि में रखते हुए कवि के कथ्य को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कवि ने इस कविता में बताया है कि दुनिया को जानना सरल है, किंतु स्वयं को जानना बहुत कठिन है। समाज में रहकर मनुष्य को खट्टे-मीठे, कड़वे सभी तरह के अनुभव होते हैं, लेकिन वह समाज से कटकर नहीं रह सकता। शासन और व्यवस्था चाहे जितना उसे कष्ट दे, लेकिन वह उनसे कटकर नहीं रह सकता। व्यक्ति की पहचान तभी है जब वह समाज में रहता है। उसका परिवेश ही वास्तव में उसकी पहचान है। कवि कहता है कि मेरा जीवन विरुद्धों के सामंजस्य से बना है। मैं विरोधाभासी जीवन जियो करता हूँ। इस गीत में कवि ने स्पष्ट किया है कि मेरे जीवन में एक प्रकार की अजीबसी दीवानगी है। मेरा यह जीवन इस संसार का न होकर भी इस संसार में जी रहा है। मैं उस हर बात से, हर घटना से, स्वयं को जुड़ा पाता हूँ जो मेरे ही विरुद्ध है।

प्रश्न 15.
‘दिन जल्दी – जल्दी ढलता है’ गीत में थके हारे राही को प्रारंभ में जल्दी – जल्दी चलने को आतुर दिखाया है और बाद में उसके कदम धीमे हो जाते हैं। ऐसा क्यों?
अथवा
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के आलोक में कवि की गति म। हृय । वलता के कारण को स्पष्ट कीजिए।
‘दिन जल्दी – जल्दी ढलता है’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
इस कविता में कवि ने जीने की इच्छा और समय की सीमितता का सुंदर वर्णन किया है। कवि कहता है कि यद्यपि राहगीर थक जाता है, हार जाता है लेकिन वह फिर भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जाता है। उसे इस बात का भय रहता है कि कहीं दिन न ढल जाए। इसी प्रकार चिड़ियों के माध्यम से भी कवि ने जीने की लालसा का अद्भुत वर्णन किया है। चिड़ियाँ जब अपने बच्चों के लिए तिनके, दाने आदि लेने बाहर जाती हैं तो दिन के ढलते ही वे भी अपने बच्चों की स्थिति के बारे में सोचती हैं।

वे सोचती हैं कि उनके बच्चे उनसे यही अपेक्षा रखते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे लिए कुछ खाने का सामान लाएँ। कवि पुनः आत्मपरिचय देता हुआ कहता है कि मेरा इस दुनिया में यद्यपि कोई नहीं फिर भी न जाने कौन मुझसे मिलने के लिए उत्सुक है। यही प्रश्न मुझे बार-बार उत्सुक कर देता है। मेरे पाँवों में शिथिलता और मन में व्याकुलता भर देता है। किंतु दिन के ढलते-ढलते ये शिथिलता और व्याकुलता धीरे-धीरे मिटने लगती है। वास्तव में इस कविता के माध्यम से हरिवंशराय बच्चन ने जीवन की क्षण भंगुरता और मानव के जीने की इच्छा का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।

Conclusion

RBSE Class 12 Hindi Aroh Chapter 1: आत्म-परिचय, एक गीत is a profound poem that deals with the themes of self-awareness and the search for one’s true identity. By studying this poem and understanding the RBSE Solutions, students can gain valuable insights into the poet’s thoughts and be well-prepared for their board exams.

These solutions are carefully curated to align with the RBSE syllabus for the academic year 2024-25 and are perfect for revision and understanding complex concepts. Download the solutions in PDF format to ensure you have a comprehensive understanding of the poem and are fully prepared for the Hindi board exam.


FAQs

Where can I download RBSE Class 12 Hindi Solutions for Chapter 1?

You can download the solutions for RBSE Class 12 Hindi Chapter 1 from the links provided above in PDF format.

What is the central theme of आत्म-परिचय, एक गीत?

The central theme of the poem is self-awareness and the search for true identity, focusing on the soul’s immortality.

How can I improve my exam performance using these solutions?

Practicing these solutions will give you a clear understanding of how to frame answers, enhance your knowledge of important concepts, and improve your overall exam performance.

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